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वाल्मीकीय रामायण का यह आर्यभाषा (हिंदी) संस्करण विशेष है। रामायण के उपलब्ध पाठभेदों में से शोध करके एवं प्रक्षेपों को दूर करके वह संस्करण बनाया गया है जो तार्किक हो, अन्तर्भेदों से मुक्त हो व जिसके पठन मात्र से सिद्ध हो जाए कि क्यों राम इस धरा के, जन-जन के, युगों-युगों से प्राण हैं, संस्कृति के आधार हैं। इसके पठन से स्वयमेव आपके मुख से वाणी निकलेगी - जय श्री राम, जय हनुमान, जय सीताराम।
महर्षि वाल्मिकी की ऐतिहासिक कृति का यह प्रस्तुति आपको राम की भक्ति में विभोर कर देगा। आपको एवं आपकी आने वाली पीढियों को एक ऐसा आदर्श पथ-प्रदर्शक देगा कि जीवन से निराशा, दुर्बलता, दुश्चरित्रता, पराजय वैसे दूर भागेंगे जैसे हनुमान की गदा से दुष्ट। साथ ही प्रभु राम, माता सीता, वज्रांगबली हनुमान के ऊपर जो मिथ्या आरोप विधर्मी लगाते हैं, उनका निराकरण भी सप्रमाण करेगा।
राम मांसाहारी नहीं थे। राम नै बाली के साथ अन्याय नहीं किया था। स्वर्ण मृग का वध मांस हेतु नहीं किया गया था। हनुमान उछल-कूद करने वाले बंदर नहीं, वरन् वेदों के प्रकाण्ड विद्वान थे। सीता की अग्निपरीक्षा की कथा मिथ्या है। ऐसे अनेक विषयों पर प्रकाश डालने वाला वाल्मीकीय रामायण का यह एकमात्र संस्करण आपके सब संशय दूर करेगा।
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च संमितम्।
यः पठेद्रामचरितं सर्वपापैः प्रमुच्यते॥९८॥
रामचन्द्र का यह जीवनचरित्र परमपवित्र है। जो पुरुष इसको पढ़कर उनके समान अपने जीवन को बनावे तो वह भी पवित्र हो जाता है।
प्रत्येक हिंदीभाषी के पास इस रामायण की निजी प्रति होनी ही चाहिए।
जय श्री राम
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34 | 30 | 28 | 4 | 00 | 3 | 155/75A | 36 | 44 |
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44 | 40 | 38 | 14 | 8 | 13 | 175/96A | 46 | 66 |
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48 | 44 | 42 | 18 | 12 | 17 | 170/100B | 50 | 77 |
50 | 46 | 44 | 20 | 14 | 19 | 175/100B | 52 | 88 |
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